Monday, November 9, 2009

लखनऊ मेरे शहर


'' मैं तहेदिल से स्वीकारता हु की मुझे अपनी आँखे बार बार मलकर देखना पड़ता है की कही मैं किसी सपनो के शहर में तो नही हु , ये शहर न रोम है न अथेन्स न कुस्तुन्तुनिया , मैंने अपनी ज़िन्दगी में कभी ऐसा शहर नही देखा , जिसने मुझे इतना प्रभावित किया हो जीतना लखनऊ ने ।''

लन्दन के पर्यटक विलियम रसेल ने जब अरसे पहले ये अल्फाज़ कहे तो लखनऊ की खूबसूरती ने उनके दिलो दिमाग पर जो रंगीनियत बरपा की , उसके मोह मै वो बस इस हसीन शहर को निहारते रह गए थे ।

और यकीन मानिये आज भी लखनऊ की सरज़मी जिस तहजीब से दुनिया को रूबरू करा रही है उसमे शेखो की शेखी भी है तो बाबुओ का सादा जीवन भी है , जाबाजों की जाबाजी भी है तो नवाबो की नवाबियत भी है , घुघरूओं की झंकार भी है तो मजाज़ और नौशाद जैसे फनकार भी है । ये वो शहर है जहाँ आलिया बेगम ने हनुमान मन्दिर बनवाया तो राजा झऊलाल ने इमामबाडा और मस्जिद तामीर करवाई । ज़िन्दगी के जितने रंग लखनऊ की फिजाओं में घुले है , उनका सुरूर हर उस शख्स को खुमारी में डुबो देता है जो इस तहजीब से रूबरू होता है।

आज की बदलती हवाओं में लखनऊ की नायाब धरोहरें , उम्दा ज़बान , लज़ीज़ पकवान और बेमिसाल तहजीब जहाँ किसी को भी रिझाने का मद्दा रखती है तो बदलाव को जिस खूबसूरत अंदाज़ में लखनऊ में अपनी अदाओं में शामिल किया है , वो तरक्की की और बढ़ते जोशीले कदमो की इबारत लिख रहा है ।

हमारा ये महबूब शहर अपने हुस्न के हर नए रंग के साथ चेहरे पर मुस्कान बिखेर देता है फ़िर वो चाहे चौक की पुरानी गलियों में सवरता लखनऊ हो या नई कॉलोनियों में दिनों दिन पनपता लखनऊ, कबाब और सेवई पर मचलता लखनऊ हो या पिज्जा और चोमिन पर झपटता लखनऊ , चाशनी सी घुली उर्दू में बोलता लखनऊ हो या हिंगलिश को अपनी ज़बान में घोलता लखनऊ, मस्जिदों और मंदिरों में दुआ पढता लखनऊ हो या नए संगीत की धुनों पर थिरकता लखनऊ , अमीनाबाद और हजरतगंज में महकता लखनऊ हो या माल की नई रौशनी में दमकता लखनऊ , सियासत की गलियों में पेचीदा दाव खेलता लखनऊ हो या छत पर पतंग उडाता बेपरवाह लखनऊ , इतिहास के झरोखे से झांकता लखनऊ हो या मंजिल की दूरियों को लांघता नया लखनऊ।

तमाम बदलावों और ज़िन्दगी की ज़द्दोज़हद के बीच अपने दायरों को बढाता , फ्लाई ओवरों से भीढ़ तो ख़ुद में समेटता , मेट्रो के सपने संजोता , बग्घियों, ताँगों, बागों और तहजीब का ये शहर अपनी बेनजीर अदाओं से दुनिया को आज भी रीझा रहा है इसलिए लखनऊ को देखने वाला वाला हर शख्स मुस्कुरा रहा है।

1 comment:

  1. hum aapko dikhana chahte hai aur batane chahte hai us lucknow ke baare me jo humne jiya hai jeese hum dekh rahe hai aur jeese hum mehsoos kar rahe hai ....mere shahar ka ye haseen vchehra hai jise aap sab bhi dekhe fir aage es baadab lucknoe se beadab lucknow ke bhi banne ka dard aapko zaroor sunanyege hun

    ReplyDelete