सर्द रातों मे जो फलक ओढ़ के सो जाते है
ये वही लोग है जो आलिशान महल बनाते है
अमीरे शहर ने क्या उससे भी कर लिया सौदा
अब उसके मौसम भी बस ग़रीबो पे कहर ढाते है
कमेतीयाँ जिरह अदालते यू तो सब ठीक है मगर
क्या कानून से भी कभी मसले हल हो पाते है
असलियत भी दस्तावेजों मे दब गई अब तो
वरना कागजों पे तो सब काम ही हो जाते है
वो और लोग थे जो मर गए उसूलो पे
अब तो चंद नोट मे ईमान बदल जाते है
Monday, February 15, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)