अदम गोंडवी .... गवार देहाती शायर का बेबाक निर्भीक अंदाज़।
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए
ग़लतियाँ बाबर की थीं, जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाज़ुक़ वक़्त में हालात को मत छेड़िए
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, ज़ार या चंगेज़ ख़ां
मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर ग़रीबी के ख़िलाफ़
दोस्त! मेरे मजहबी नग़्मात को मत छेड़िए
Tuesday, December 20, 2011
Wednesday, September 14, 2011
Saturday, August 27, 2011
लोकतंत्र की जीत का जश्न है ..खुशियाँ मनाइए
हमे आज़ाद भारत का युवा होने का आज गर्व हैं ..पहली बार देखी हमने लोकतंत्र में लोगो कि ताकत ..,सिर्फ राजनैतिक पार्टी के झंडो तले ही रैली नहीं निकलती, आन्दोलन ज़मीन पर जब उतरता है, तिरंगा कैसे ताकत का चिन्ह बन कर उभरता है, जब वन्दे मातरम के नारे सड्को पर दिन भर चिल्लाये जाते है तो तो दिल में कैसे तरंगे उठती है..बिना हिंसा के कैसे सरकार झुकती है, संसद क्यों संप्रभु है क्युकी वो जनता की है ...इसके लिए अन्ना जी का धन्यवाद..
Saturday, August 20, 2011
बाँध ले कफ़न हर कोई और तैयार हो जाये हम दे रहे है पैगाम वो खबरदार हो जाये..
बाँध ले कफ़न हर कोई और तैयार हो जाये
हम दे रहे है पैगाम वो खबरदार हो जाये
ज़ुल्म सहते सहते बूढी हो गई कितनी नसल
तय किया है जो हो फैसला इस बार हो जाये
एक आंधी ने जगा दी नई सुबह कि रौशनी
जला देंगे इतने दिए ख़त्म अन्धकार हो जाये
जो समझकर खुद को बठे है खुदा इस मुल्क का
अब दिखायेगे ऐसी हकीकत वो शर्मसार हो जाये
आज हम कर देंगे इतना तेज़ इस आवाज़ को
बहरी हमारी हुकूमत सुनने को तैयार हो जाये
हम दे रहे है पैगाम वो खबरदार हो जाये
ज़ुल्म सहते सहते बूढी हो गई कितनी नसल
तय किया है जो हो फैसला इस बार हो जाये
एक आंधी ने जगा दी नई सुबह कि रौशनी
जला देंगे इतने दिए ख़त्म अन्धकार हो जाये
जो समझकर खुद को बठे है खुदा इस मुल्क का
अब दिखायेगे ऐसी हकीकत वो शर्मसार हो जाये
आज हम कर देंगे इतना तेज़ इस आवाज़ को
बहरी हमारी हुकूमत सुनने को तैयार हो जाये
Wednesday, August 17, 2011
कुछ कविताये हमेशा प्रासंगिक होती है..नागार्जुन बाबा की कलम बोल रही है
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती ,
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती ,
गद्दारी , लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती .
बैठे बिठाये पकडे जाना बुरा तो है ,
सहमी सी चुप मै जकड़े जाना बुरा तो है ,
पर सबसे खतरनाक नहीं होती .
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना ,
न होना तड़प का , सब कुछ सहन कर जाना ,
घर से निकलना काम पर , और काम से लौटकर घर आना ,
सबसे खतरनाक होता है ,
हमारे सपनो का मर जाना .
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती ,
गद्दारी , लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती .
बैठे बिठाये पकडे जाना बुरा तो है ,
सहमी सी चुप मै जकड़े जाना बुरा तो है ,
पर सबसे खतरनाक नहीं होती .
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना ,
न होना तड़प का , सब कुछ सहन कर जाना ,
घर से निकलना काम पर , और काम से लौटकर घर आना ,
सबसे खतरनाक होता है ,
हमारे सपनो का मर जाना .
Sunday, August 14, 2011
आजादी की तहे दिल से मुबारकबाद ....इकबाल कि कलम से
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी
जिंदगी शम्मा की सूरत हो खुदाया मेरी
हो मेरे दम से यूं ही मेरे वतन की जीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की जीनत
जिंदगी हो मेरी परवाने की सूरत या रब
इल्म की शम्मा से हो मुझको मोहब्बत या रब
हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्दमंदों से ज़ईफों से मोहब्बत कराना
मेरे अल्लाह बुराई से बचाना मुझको
नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको
Wednesday, March 23, 2011
आज velentine डे नहीं पर कुछ है ....
हवा में मह्केकी मेरे ख्याल की खुशबू
ये मुश्ते खात है फानी रहे रहे न रहे ...
ये पंक्तियाँ जिसने लिखी वो २३ साल का नौजवान लड़का अपनी आँखों में आज़ाद , शोषण से मुक्त और सफलता की ओअर बढ़ते हुए हिन्दुस्तान का सपना लिए मौत की दहलीज़ पर खड़ा था, उसने शायद कभी choclate डे, फ्रेंशिप डे , velentine डे और किस डे नहीं मनाया पर उसने अपनी ही मौत का जश्न ज़रूर मनाया था, उसने और उसके साथ शहीद होने वाले उसके साथियों ने एक रास्ता तैयार किया था कल के हिन्दुस्तान की प्रगति और आजादी का. आज हम modern हो गए है पर हमने आज भी उतनी किताबें तो नहीं पढ़ी होगी जो उसने २३ बरस की उम्र में चाट ली थी . हम ग्लोबल वर्ल्ड में रहते है बहुत सारे डे मनाते है पर आज भी एक दिन है .२३ मार्च १९३१ को भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव ने फ़ासी का फंदा गले में दाल लिया ताकि कल का हिन्दुस्तान ग़ुलामी और शोषण के फंदे से आज़ाद हो जाए.
हम आज व्यस्त है , सिर्फ खुद को सफल करने की एक दौड़ में भाग रहे है परबहुत सारे दिनों को मनाते मनाते कार्ड्स और टेडी गिफ्ट करते हुए हम आज का दिन भूल गए है पर अगर भूल से आपकी नज़र इस पोस्ट पर पड़े तो एक बार उन शहीदों को याद ज़रूर करियेगा क्युकी आज हिन्दुस्तान अपने शहीदों की याद में शहादत दिवस मनाता है शायद किसी तोहफे के तो नहीं पर हमारे चाँद पलों पर वो अपना हक रखते है जहाँ हम दिनरात अपने नेताओ को कोसते गालियाँ देते है तो हमारे राष्ट्रीय नायकों को भी हम अपनी स्मृतियों में जगह तो दे ही सकते है ...
ये मुश्ते खात है फानी रहे रहे न रहे ...
ये पंक्तियाँ जिसने लिखी वो २३ साल का नौजवान लड़का अपनी आँखों में आज़ाद , शोषण से मुक्त और सफलता की ओअर बढ़ते हुए हिन्दुस्तान का सपना लिए मौत की दहलीज़ पर खड़ा था, उसने शायद कभी choclate डे, फ्रेंशिप डे , velentine डे और किस डे नहीं मनाया पर उसने अपनी ही मौत का जश्न ज़रूर मनाया था, उसने और उसके साथ शहीद होने वाले उसके साथियों ने एक रास्ता तैयार किया था कल के हिन्दुस्तान की प्रगति और आजादी का. आज हम modern हो गए है पर हमने आज भी उतनी किताबें तो नहीं पढ़ी होगी जो उसने २३ बरस की उम्र में चाट ली थी . हम ग्लोबल वर्ल्ड में रहते है बहुत सारे डे मनाते है पर आज भी एक दिन है .२३ मार्च १९३१ को भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव ने फ़ासी का फंदा गले में दाल लिया ताकि कल का हिन्दुस्तान ग़ुलामी और शोषण के फंदे से आज़ाद हो जाए.
हम आज व्यस्त है , सिर्फ खुद को सफल करने की एक दौड़ में भाग रहे है परबहुत सारे दिनों को मनाते मनाते कार्ड्स और टेडी गिफ्ट करते हुए हम आज का दिन भूल गए है पर अगर भूल से आपकी नज़र इस पोस्ट पर पड़े तो एक बार उन शहीदों को याद ज़रूर करियेगा क्युकी आज हिन्दुस्तान अपने शहीदों की याद में शहादत दिवस मनाता है शायद किसी तोहफे के तो नहीं पर हमारे चाँद पलों पर वो अपना हक रखते है जहाँ हम दिनरात अपने नेताओ को कोसते गालियाँ देते है तो हमारे राष्ट्रीय नायकों को भी हम अपनी स्मृतियों में जगह तो दे ही सकते है ...
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