Friday, December 25, 2009

ये ग़म ही तो हैं जो हमेशा वफादार रहे हैं


अब हर शख्स में उसको ही तलाश रहे हैं
जिसके साथ भी कभी हम उदास रहे हैं
ख़ुशी का लम्हा हो या हो ग़म का मौसम
हमारे हर जज़्बात में उसके ही एहसास रहे हैं
ग़मों से ज्यादा शिकायत नहीं रही हमको
ये ग़म ही तो हैं जो हमेशा वफादार रहे हैं
उसने मुडके न देखे कभी पैरो के निशां भी
तो कैसे कह दे की वो हमारे कभी यार रहे हैं
उलझनों से अब दिल को लगावट सी हो गई
वो और होंगे जो खुशियों के तलबगार रहे हैं



1 comment:

  1. Good noon ji!
    I wish this is just a blog. only n only a blog.
    Ap koi romantic ghazal kyun nahin likhtin....
    Agar koi inspiration chahiye to Men Hun Na!

    Allways With You,
    UCT

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